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ईश्वर — एक प्रश्न, एक खोज

“मनुष्य के मन में सदियों से यह प्रश्न गूंज रहा है — क्या ईश्वर है?”

प्रश्न का आरम्भ

यह ऐसा सवाल है, जिसका उत्तर हर युग में, हर व्यक्ति ने अपनी-अपनी बुद्धि और आस्थाओं के आधार पर देने की कोशिश की। परंतु क्या वे स्वयं आज अपने ही उत्तर पर विश्वास रखते हैं? अगर रखते हैं, तो क्यों? और अगर नहीं रखते, तो क्यों नहीं? यही “क्यों” शब्द ही अक्सर नई कहानियों को जन्म देता है।

दार्शनिक जॉस्टीन गार्डर ने सोफ़ीज़ वर्ल्ड में लिखा है —

“मनुष्य स्वभाव से ही जिज्ञासु है, हर प्रश्न का उत्तर खोजता है। जब उत्तर नहीं मिलता, तो एक अंतिम उत्तर गढ़ता है — ईश्वर।”

और फिर उस उत्तर को मज़बूत करने के लिए कहानियाँ बुनी जाती हैं, धर्म खड़े किए जाते हैं।

क्या ईश्वर मात्र एक कहानी है?

दुनिया का सबसे बड़ा सच यही है कि सच क्या है — यह किसी को नहीं पता। हो सकता है ईश्वर हो, हो सकता है वह न हो, यह भी संभव है कि वह हो, पर जैसा हम सोचते आए हैं, वैसा न निकले।

कौन जानता है, शायद किसी अन्य लोक से आया कोई, हमसे अधिक शक्तिशाली, हम पर दया रखने वाला, कभी किसी ने उसे देखा और नाम दे दिया — ईश्वर

मनुष्य का स्वभाव विचित्र है — जो दया दिखाए, उसे भगवान मान लेता है। शायद आज की दुनिया में दया दिखाना ही दुर्लभ और महान कार्य हो गया है।

सच यही है — हम अभी उस अवस्था में नहीं पहुँचे कि ईश्वर के अस्तित्व को पूरी तरह स्वीकार कर सकें, या निडर होकर उसे पूरी तरह नकार सकें।

अगर ईश्वर न हो तो?

अगर ईश्वर न हो, तो भी यह संसार वैसे ही चलेगा, जैसे अब तक चलता आया है। बस शायद कुछ लोग, जिनमें मानवता केवल ईश्वर के भय से बसी थी, वह मानवता भी खो दें।

शायद वे अब न किसी ग़रीब की मदद करें, न किसी पशु पर दया दिखाएँ — क्योंकि अब उन्हें इन सब से कोई स्वर्ग या पुण्य नहीं मिलेगा।

“शायद किसी ने ईश्वर की कल्पना ही इसलिए रची हो — मानवता को जीवित रखने के लिए।”

या शायद ईश्वर स्वयं ही प्रकट नहीं होता — यह देखने के लिए कि उसके बिना इंसानियत कब तक जीवित रहती है।

अगर ईश्वर है तो?

अगर ईश्वर है, तो क्या वह इतना पक्षपाती, इतना भ्रष्ट हो सकता है कि किसी की चापलूसी से प्रसन्न होकर उसे सब कुछ दे दे, और किसी के सीधेपन से आहत होकर उसे दंडित कर दे?

“यह तो दानवों की प्रवृत्ति है, ईश्वर की नहीं।”

उत्तर शायद हमारे भीतर है

यदि कभी किसी को ईश्वर मिलें, तो मुझे भी बताना — कुछ प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं।
तब तक अपने भीतर सोए ईश्वर को जगाइए, उसकी करुणा और बुद्धि से इस धरती को ऐसा बनाएँ कि —

“अगर ईश्वर है, तो वह भी अपना धाम छोड़कर यहाँ रहने आना चाहे।”

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